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नव वर्ष बधाई

नमन मंच को भोजपुरी मानसरोवरतारीख: 29-3-25 “नव वर्ष बधाई” नव वर्ष मंगलमय हो सबका।आया शुभ महीना चैत्र का।प्रारंभ सप्तशती पाठ हुआ।जला,दीप मां अम्बिका का। बजने लगा घंटा मंदिर काआया जन्म दिन रघुवीर कादेवताओं ने किया पुष्प वर्षानवमी तिथी चैत्र मास का। मंगलमयी हो गयी अयोध्या।घर घर बजें पुनीत बधावा ।सजा महल दशरथनन्दन का।सजा सौभाग्य मां कौशल्या का। देखो भक्त का भाग्य है चमकाउजिआया भाग्य तपस्वी राजा कारुप धारण किया देव ने पुत्र काप्रमुदित हुआ मन जन-मानस का। स्वरचित एवं मौलिक रचना। शमा सिन्हारांची,झारखंड

आज की मीरा

                  “आज की मीरा” नहीं कहने को बचा था,उसके पास एक तारे की बात।ना वह नाच सकती थी, लेकर भजन भक्तिको साथ । प्रयत्न कर वह सुर योग की, कुछ बुन लेती आज।प्रशिक्षण लिया ध्यान लगाना, मध्यम धुन साज। गोद बिठाया बाल कृष्ण को निर्मलताके साथ।मन ही मन करती उनसे अपनी कई सारी बात। तोड़ जिम्मेदारी का चक्र ,बांध ना पाती मन।बस कुछ क्षण को, खो जाती सुन मधुर भजन। वह गृह त्याग ना पाती, उस मीरा से है जीवन भिन्न।मजबूरी की डोरी से रहता है बंधा उसका प्रण। तोड़ समाज का बंधन, विषपान की जुटा ना पाती शक्ति।मोक्ष दायी … Continue reading »आज की मीरा

सद्कर्म ही मेरे जीवन की पूंजी है।

हिन्दी सृजन सागरदैनिक प्रतियोगिताविषय:सत्कर्म ही मेरे जीवन की पूंजी हैतिथि २५.३.२५ सत्कर्म ही ही मेरे जीवन की पूंजी है। लेकर जिस को उड़ता प्रारब्ध पंछी है। देन लेन का काम सब इसके जिम्मे है। अपने बस में बस यही एक कृत कर्म है। समर्थ मनुष्य भी, कुछ और ढोल पाता है। अन्त समय दोनों हाथ खाली रह जाता है। कितना भी हिसाब-किताब वह कर जाये। साथ की झोली सिर्फ सत्कर्मों से ही भर पाऐ। महल अटारी सब निरर्थक खड़ी नजर आए। नेपथ्य में पंछी बन श्वास क्षण भर में खो जाये। मात ,पिता, पत्नी, पुत्र बांधव देखते रह जायें। एक … Continue reading »सद्कर्म ही मेरे जीवन की पूंजी है।

गुनगुना रही है ज़िन्दगी

गीत नया गुनगुना रही है ज़िन्दगी । खुल रही बात बहुत जिसमें अनसुनी । पुरानी वो उलझनें सारी सुलझ रही। सनातन तत्व की तस्वीर नई बन रही। खेल पर किस्मत के पहले रोती थी। नसीहतों से बहुत दूर मैं भागती थी। क्यों होता है ऐसा, मैं उलझ जाती थी। कैसे बदलू सबको,समझ ना पाती थी। सुन कर गीत उसका, सत्य समझ गई । बह रही थी मस्त वह धुन गुनगुनाती हुई । बगैर जाने मैं  कौन और क्या हूं चाहती। उसके साथ बस मैं भी वहीं गीत गाने लगी। इर्द-गिर्द अपने मैं अब देखती नहीं । बहे जिस ओर हवा, … Continue reading »गुनगुना रही है ज़िन्दगी

अमर शहीद

नमन मंच मानसरोवर काव्य मंचविषय-अमर शहीद भगत सिंह, राजगुरू, सुखदेवविधा-कवितातिथि -२३-३-२५शीर्षक -अमर शहीद                  “अमर शहीद ” लिख कर लाल लकीरों से कहानी,कर दिया वतन के नाम ज़िन्दगी अनगिनत ने जिया ऐसी जवानी ।धैर्य को बनाकर अपनी रवानी! सुनकर हिंद के वीरपथिको की कथा,बह पड़ा काजल बन, मां की व्यथा । गिन नहीं पाएंगे कितने बलिदानी थे?कितने भगतसिंह, राजगुरू सुखदेव थे! इन सपूतों की गिनती नहीं हो सकतीसुभाष सीकितने ही खुदीराम की थी सुमती। अत्याचारियों ने खीच ली थी अंगों की झिल्लीआहत कर तन को, नहलाया खूनी होली । फिर भी जांबाजो की ना निकली आह की बोली।रंग लिया था … Continue reading »अमर शहीद

My mind

My mind is continuously busy Percolating, churning fussy. Little it truly understands Shower reason through wand . Events come asper Your preplan its understanding to me is ban. My Present knocks too hard From attachment can’t part. moment  open new puzzles Quizzing emotion drizzles. I always want to talk it over Expected ears seem tightly shut. Except You there’s none around Questions numerous surround Into hearth it disappeared forever Heart with nervousness does sever I know not how to make way For solutions don’t come away. Lord will you not review all that this confusion always  call. Every moment seems … Continue reading »My mind

उन्हें क्या

समझदार है पर कुछ भी कह जाते हैं दर्द  दिल का वो कभी ना समझ पाते हैं हैं वो बुजुर्ग लेकिन उनमें समझ नहीं उनके सुझाव मुझे कितना तड़पाते हैं। वो क्या जाने कैसे बनाया घरौंदा हमने उनको चांदी की चम्मच मिली खाने में मैंने कैसे ईंट  जोड़ बनाया घोंसले को मिलाया कैसे सीमेंट बालू गिट्टी गारे में। दर्द कितना हुआ यह मैं हूं बस जानती उनके लिए तो सब बेकार कीमत है बहुत आसानी से कहा बेदर्द गैरत है “अब वह सब तुम्हारे लिए बेकार है,!” ऐसे लोगों से पहले भी चोट खाया मैं ने आंसू बहाकर बहुत रोया … Continue reading »उन्हें क्या

बस इतना बता दो

तुम आओ ना आओ, मुझे बस,इतना बता दो राज़ पुराना खोल कर कहो। बांधा क्यों इतना गहरा बंधन बन गये तुम श्वासो का स्पंदन! भारी बना है जीवन हर दिन, कांटे ना कटती, लम्बे पल-छिन! समय बना है,अनसुलझा रिण विचित्र विचारों से घिरा यह मन। ऐसा क्या कर्म किया मैंने गहन अंधेरा छाया घर में आस का दीपक बुझ ना जाए कलि बिना खिले ही ना मुरझाए! लगता नहीं अब मन यह मेरा देखता हर पल आस है तेरा टूट गया मेरी नाव का बेड़ा जाने कैसे आयेगा सवेरा?

नमन मंच

मानसरोवर काव्य मंचदिनांक -१७-३-२५शीर्षक -“तुमको लगता है कि”विधा- गीत            “तुम को लगता है….” तुम को लगता है कि तुम मुझसे जीत गये .फक्र हमें हैं,मुस्कान पर तेरे दिल हार गए ।तुमको लगता …. तुम इसे जीत समझकर गुमान करते हो.तेरी मुस्कान का सौदा हम इससे करते हैं ।तुमको लगता है … तेरा रुठना भी हमें बहुत भला लगता है .इस बहाने करीब तुम्हारे हम आते हैं।तुम को लगता है इकबार ,एक नजर मुझे तुम देख लेते होकसम तुम्हारी इस बहाने मैं भी जी उठता हूं।तुमको लगता है … ज्यादा नहीं बस एक ही इनायत चाहता हूं .अलविदा कहने से पहले … Continue reading »नमन मंच

तुम को लगता है…

मानसरोवर काव्य मंचदिनांक -१७-३-२५शीर्षक -“तुमको लगता है कि”विधा- गीत                “तुम को लगता है….” तुम को लगता है कि तुम मुझसे जीत गये .और हम हैं कि तेरी मुस्कान पर दिल हार गए ।तुमको लगता …. तुम इसे जीत समझकर गुमान करते हो.तेरी मुस्कान से इसका सौदा हम करते हैं ।तुमको लगता है … तेरा रुठना भी हमें बहुत भला लगता है .इस बहाने पास तुम्हारे हम आते हैं।तुम को लगता है इकबार ,एक नजर मुझे तुम देख लेते होकसम तुम्हारी इस बहाने मैं भी जी उठता हूं।तुमको लगता है … ज्यादा नहीं बस एक ही इनायत चाहता हूं .अलविदा … Continue reading »तुम को लगता है…