नवनिर्माण

संध्या हो रही थी मीता विचारों में गुथी, घिरते अंधेरों को देख रही थी। सुधीर के देहावसान को तीन साल हो गए थे। पर आज भी उसे ऐसा हिलाता ,जैसे अभी अभी की बात है। गोधूलि की वह बेला, उसे प्रतिदिन उस छन की याद ताजा कर देती ।ऐसा होना स्वाभाविक भी था। चालीस साल का साथ,एक पल में भुलाना ,किसी के लिए संभव नही । फिर एक पत्नी अपने पति को कैसे भूल सकती है? ये रिश्ता सात जन्मों का होता है,यही तो सब कहते हैं।

” यह शाम तो रोज आती है। मैं क्यों इसे लेकर इतना परेशान हो जाती हूं ।” मिटा का मन,फिर उन्ही यादों में खो गया।

उसने कलाई पर बन्धी घड़ी देखा। ठीक 6:30 होने को था। उसने दीवाल पर लगे स्विच बोर्ड का बटन दबा दिया। ऊंची आवाज में गीत बजने लगा -“कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन”। अचानक ही सारा माहौल वेदना से भर गया ।तेज कदमों से चलकर वह, रेडियो के पास पहुंची और एक बार फिर उसी झटके के साथ उसने स्विच बंद कर दिया,जिस तत्परता से उसने बजाया था। आंखों में टिके आंसू झठ से भूमि पर गिर पड़े ।बेकाबू मन को रोकने की कोशिश में उसने किचन रैक से डस्टर उठाया और रैक पर रखी किताबों को झाड़ने लगी।

परंतु मानव मन तो ऐसा तत्व है जिसे काबू करना साधारण बात नही। परिश्रम ही नही,पल पल के संयमित प्रयत्न के साथ लंबे समय का अभ्यास चाहिए होता है। धैर्य में थोड़ी भी लापरवाही हुई तो चाहे कितना भी प्रयत्न करो यह अपनी मौज मस्ती में बह निकलता है ।वह भी चाहती थी कि वह उन विचारों से छुट्टी पाले। किन्तु वो यादें उसका हिस्सा बन गयी थीं। प्रतिदिन शाम को उसे बरबस ही घेर लेती । करतीं भी क्यों नही,लंबा वैवाहिक बंधन का साथ,जिसे अचानक एक पल में छोड़ना पड़े, ऐसी घड़ी को दिमाग से निकलना संभव नहीं था।साधारण इंसान के लिए तो कदापि नहीं! कोशिश अपनी जगह ही रह जाती है और यादें मस्तिष्क पर हावी रहती हैं

मिता, कारण से वाकिफ थी और भलीभांति समझती थी कि, उसे शाम की बेला क्यों वेदना से भर जाती है पर फिर भी वह अपने को रोक नहीं पाती। ” आप क्यों चले गए ?”रह रह कर उसका मन प्रश्न करता और उस शाम की सारी प्रक्रिया पुनः पुनः उसके मन को घेर लेती। वैसे तो उसके पति सुधीर को गुजरे करीब तीन साल हो रहे थे पर हर शाम उसे ऐसा ही लगता जैसे अभी अभी वे यहीं थे।

आज की शाम भी अन्य शाम की तरह विचारों को लेकर आई थी ।”नहीं ,तुम ऐसे नहीं जी सकती !” उसे लगा जैसे किसी ने उसके कानों में कुछ कहा।अभी संभली भी नही थी कि, आवाज सुन कर ममता चौक गई जैसे किसी ने उसे धीरे से पुकारा। उसे लगा उसके पति ने कहा,”नहीं, तुम ऐसे नहीं जी सकती ।” उसने मुड़कर देखा वहाँ कोई नहीं था ।किन्तु वह शब्द बार-बार दोहरा रहे थे। वह सोफे पर बैठ गई । उसके मन में वही शब्द गूंज रहे थे। उसने हटात प्रश्न किया” …तो क्या करूं? मैं समझ नही पा रही,क्या करूँ। ऐसे में जिंदगी आगे नही बढ़ सकती।”

वह रुकी रही, इसी उम्मीद से कि उसे जवाब मिलेगा ।कुछ देर मौन पसरा रहा पर पुनः उसे लगा उसकी अंतरात्मा,उसे कुछ इंगित कर रही है ।”क्या करूं कि मैं इन यादों के घेरे से बाहर निकल सकूँ। आख़िर इन सांसों को उदासी के लम्हों से कैसे बाहर निकालूँ?”वह स्वयं से ही पूछ रही थी।

” तुम्हें ही जीवन को नई दिशा देना पड़ेगा !”उसे लगा उसकी अंतरात्मा ने जवाब दिया ।वह उसी क्षण एक नई स्फूर्ति से भर गई। “हां,मैं करूंगी। मैं अपने जीवन को नई मंजिल दूंगी।अपनी नई पहचान बनाऊंगी।” वह स्थिर उत्साह से भर गई ।उसने खिड़की के बाहर देखा। शाम जा चुकी थी। रात के 8:30 बज रहे थे वह झटके से उठी, डस्टर किचन में जगह पर रखा और संध्या की आरती करने की तैयारी की। उसने दिया जलाया और तुलसी चबूतरे पर रखकर क्षमा प्रार्थना की।

फिर बड़े है सुलझे मन से, एक सादे कागज पर, उसने कलम से खड़ी और आड़ी रेखाएं खींची ।अपने लिए नित्य का रूटीन बनाया ।उसने समय को इस तरह भागों में बांटा की शाम का समय, उस का सबसे व्यस्त काल बन गया। पक्के निश्चय के साथ उसे कारगर करने का मन बना लिया और बिना आलस के, उसने उस पर अमल भी किया।सुधीर की यादों को उसने अपने जीवन की शक्ति बनाने का निश्चय किया।अब उसे शाम बिताने मैं कम परेशानी होती थी। व्यस्तता ने उसे हल्का कर दिया। एक पल को वह खाली न बैठती।प्रातः के सूर्योदय से रात के सोने की घड़ी तक ,वह कुछ न कुछ सकारात्मक कार्य मे व्यस्त रहती।

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सूर्य की लालिमा अपने आने का संदेश दे रही थी । मसहरी की डोरी खोल वह शौच से निवृत्त हो गई।फिर कमरे में बने छोटे से मंदिर के पट खोल, हाथ जोड़ खड़ी हो गई। हाथ जोड़ उसने सादे मैन से बिनती की।

“प्रभु,समय अनुकूल हो ,मेरा चित् शांत रहे और मन कर्म वचन,सदा आपके चिरंतन शक्ति की सेवा में लगा रहें । …मैंने कुछ तो अपराध किया है, ना प्रभु !आखिर मैं यूँ अकेली क्यों हो गई ? अपनी कृपा बरसाओ। व्याकुलता शांत कर दो। आज वो जिवित नही हैं पर फिर भी उनको देखने की लालसा बनी रहती है । जिज्ञासा शांत नहीं होती। एक तीव्र आकांक्षा सदा मन में दबी रहती है। मुझसे आप ही बात करें प्रभु! अब जो यह श्वास बची है, इसे लोक कल्याण कार्य रास्ते में लगा दें ताकि मेरे कर्म सुधरे। मैं संतुष्ट रहूं ।आपके अनुकूल चल सकूँ।”

वह प्रतिक्षण व्याकुलता से प्रार्थना करती। वह कार्य मैं व्यस्त रहते भी बेचैन सा महसूस करती आज भी वह कुछ साफ सफाई में लगी थी कि फोन बज उठा ।उसने तपाक से उठा लिया। उसके पति सुधीर के मामा का फ़ोन था। घर निकट ही था ।रोज का आना जाना था।

” जी मामा ,प्रणाम।”

” आज तो बहुत जल्दी उठा ली फोन वरना, तुम से तो बात करना कठिन होता है सुबह या शाम को ही बात होती है सुधीर के मामा ने शिकायत की।”

“जी मामा,असल में फोन तो कमरे में रहता है और हम इधर उधर, बाहर भी रहते हैं ।अतः जब कमरे में आए तो फोन ऑन कर देखा और तब मालूम होता है कि किसका फोन आया ,तब बात करती हूं ,मामा।” ममता ने सफाई दी।

” वह तो ठीक है पर कभी जरूरी काम भी रहता है ।तुरंत बात करने की आवश्यकता रहती है की नहीं।…. तुम आ जाना आज। जरा अपनी मामी के पास बैठना ।उनकी तबीयत ठीक नहीं ।”मामा की आवाज में चिंता थी।

” मैं आ जाऊंगी” मिता ने आश्वस्त कर दिया। फोन कट गया ।वैसे तो सुधीर के मामा से रोज का ही आना जाना था पर आज का बुलावा उसे भी कुछ ज्यादा उत्सुक कर रहा था वह सोच में पड़ गई आखिर बात क्या है। मामा स्वयं दिन में कई बार चक्कर लगा लेते थे।वह भी कभी-कभी चली जाती थी पर ऐसा निमंत्रण उसे कभी नहीं मिला था।

आज घर का काम ,अपनी दिनचर्या को उसने चुन चुन कर उतने ही क्रियाओं तक रखा था , जहां तक आवश्यक हो बाकी समय मिलने पर करने का निश्चय कर वह शीघ्र मामी के पास जाना चाहती थी ।रिश्ते नाजुक होते हैं और उम्मीदों के पैरों पर टिके रहते हैं ।पर सुधीर के मामा का स्वभाव कुछ अलग था ।बिना किसी अपेक्षा के वे सदा नीम की छाया की तरह, उसकी मदद को खड़े रहते। उसके घर में कोई अनजान व्यक्ति घुसा, और मामा अपनी टूटी टांग के बावजूद धीरे धीरे चल कर पहुंच जाते।

उस दिन भी,सुबह का समय था और सड़ती बेकार लकड़ी लेने संतिया ,मीता की कामवाली आई हुई थी। मीता ने भी खुशी से उसे ले जाने की आज्ञा दे दी थी।” पड़े पड़े भी तो लकड़ी मैं घुन ही लग रहा। संतिया की घर का कहना बनेगा। इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है।” वह खड़ी खड़ी सोच रही थी कितबतक मामा आ गए।

” कौन आया है ?अभी हमने देखा कोई जवान लड़का घुसा है ।”

सामने खड़ी सन्तिया ने कहा “वह हमारा आदमी है ।लकड़ी काट रहा है,सो हमरा बेटा ,लकड़ी घर ले जाएगा ।”

“हम मामा हैं, समझी।हमसे पूछ कर इस गेट मैं घुसा करो।” मामा बड़े रौब से कहते।

“हाँ, मामाजी। हमको दीदी बताइन हैं।”

मामा की उपस्थिति, ममता के जीवन में, एक ऐसा सुरक्षा कवच था जिसकी तुलना किसी से नहीं कर सकती थी। उनकी वजह से ही वह अकेली घर में रहने की हिम्मत जुटा पाती थी। सुबह की चिड़िया की तरह ,मामा कमजोर पैरों के साथ लगड़ाते पहुंच जाते थे। गेट का सुबह-सुबह खोलना उनके आगमन की सूचना दे देता था। मां का,आगंतुकों को टोकना,मीता को बुरा नहीं लगता। अपितु वह उनकी वजह से सशक्त महसूस करती थी। पति के अचानक गुजर जाने के पश्चात वह भी,छायाविहीन वृक्ष की तरह अपना अस्तित्व खोजा करती थी । पति का बनवाया घर था। जब रहने का समय आया तो मीता, अकेली ही रहने आई। उसमें कभी दोनों साथ वास न कर सके ।

सुधीर के देहावसान के बाद, वह बच्चों के पास ही रहने लगी।जब दो वर्षों के बाद वह लौटी तो व्यवहारिक रूप से उसके माता पिता तो मामा ही थे। बदले में वह सिर्फ झुक कर प्रणाम करती थी और वह भावुक हो उठते।

” छोड़ दुलहिंन ,रोज-रोज पैर छुए के जरूरत नइखे।”भावुक हो कर मामा भोजपुरी में बोलने लगते।

मामी भी खड़ी बोली में बोलती,” रहने दीजिए क्या रोज-रोज पैर छूती हैं ।”

पर मीता पाव छूने की रस्म निभा कर अपनी सुरक्षा को पक्का कर लेती। मामा की आवाज में एक मजबूती एक सुरक्षा थी। उसे वह किसी मूल्य पर खोना नहीं चाहती थी। पर आज सुबह के फोन में उसे बड़ा अजीब सा अनुभव दिया ।वह समझ नहीं पा रही थी कि, मामा ने उसे मामी के पास बैठने को क्यों बुलाया है,जब कि उनकी बेटी उन्हीं के साथ रहती है ,और उससे मामी ज्यादा जुड़ी है। फिर भी वह मामा की बात टाल नहीं सकती थी ।

जल्दी जल्दी नहा कर,उसने दो रोटी के बीच अमूल चीज का टुकड़ा दबाया और पानी की घोंट पर निगल लिया। फिर पैरों में चप्पल डालकर व ताला लगाने को चाबी खोजने लगी ।बाहर निकलते ही उसने घड़ी देखा। मामा के कहे से दो घंटे बीत चुके थे ।मोबाइल, बैग में डाल कर व ताला लगाई और मामी के घर की तरफ मुड़ गई ।

गेट पर खड़ी खड़ी चेन से खटखटाने लगी ।कई बार खटखटाने के बावजूद जब गेट नहीं खुला तो, वह मोबाइल निकालकर मामा को फोन लगा दी ।

“बहुत देर से हम खड़े हैं ,मामा। गेट पर आवाज दे रहे हैं पर कोई नहीं खोल रहा है ।”मिटा की आवाज घबराई सी थी।

“हम देखते हैं ,तुम वहीं पर रहो ।”कह कर मामा ने फोन काट दिया।

थोड़ी देर बाद फिर मामा ने फोन किया “हां दुलहीन, तुम्हारी मामी आ रही है ।यही गेट नंबर तीन पर सामान लेने गई हैं ।…उनके पास रहना।… जाना नहीं।…. मेरा आज कोर्ट है ।….हम नहीं आ सकेंगे।”जबतक वह कुछ कहती तबतक, मामा फ़ोन काट चुके थे।

धूप में खड़ी खड़ी सोचने लगी “क्या बात है कि मामा ने मुझे मामी के पास बैठने को कहा है ।छोड़कर ना जाने, की हिदायत दी है ।”वह सोच ही रही थी कि मामि सामने से आती दिखीं।मामी को आते देख वह औपचारिक हंसी ,हंस दी।

” बहुत देर से खड़े हैं मामी ।कैसी तबीयत है ?” ममता जवाब का इंतजार कर ही रही थी कि मामी के आंखों से आंसू बह निकले। आंचल को मोड़कर उन्होंने आंखों के आगे लगा लिया और फूट फूट कर रोती रही ।

मामी को रोता देख मीता कुछ देर आशचर्य चकित रही ।फिर किसी तरह हिम्मत बांध कर उसने पूछा “क्या हुआ मामी ?आप इस तरह क्यों रो रही हैं? मामा बहुत चिंतित हो गए हैं।” किसी तरह गेट खोल कर दोनों अंदर आयीं।

“क्या खाक चिंता करेंगे ।उन्हीं की बातों ने तो आहत किया है। कुछ नहीं समझते बस अपना रौब दिखाते रहते हैं।देखिएगा, हमको कुछ हो जाएगा एक दिन।”

अभी वो और भी बातें कहतीं पर ममता ने बीच में ही रोक दिया ।”आखिर क्या कहा उन्होंने ?”

“बच्चों से गलती होती ही है ।मां बाप इस तरह करते हैं,क्या? आपको तो सब मालूम ही है ,मैं क्या बतलाऊं।” मामी ने कहा ।

“अच्छा वह बात!जो मानव ने 500000 लिए रुही से कहा!”

“हाँ, वही बात है । हाँ वही !अब कहते हैं कि ,मानव को गोली मार देंगे। लफंदर है।कमाई कुछ नहीं और बड़ा बड़ा बिजनेस करने की बात करता है ।….मैं मानती हूँ,उसने गलत किया,रूही से पैसा मांगा। मांगना ही था तो हमसे मांगता । हमसे कहता।…लेकिन. रूही की भी तो गलती है उसे क्या जरूरत थी ,मौसी लोगों से कहने की ….जब हम जिंदा हैं। आखिर पैसा तो हम ही वापस दिए ना!…मानव भी हमसे कह सकता था। हम समझ सकते हैं,उसकी मदद रोजी नहीं कर सकेगी। हमे मालूम है।…. वह कम कमाती है ।… मेरे चारों बच्चों में सबसे कम कमाई ,रोजी की है ।रूही ने शादी भी नहीं की। जो कमाती है,अपने पर ही खर्च करती है ।…..शायद यही देख, मानव ने उसके आगे हाथ पसार दिया पर मुझसे भी तो कह सकता था ।अब अचानक यह बात खुली है, तो मामा बवाल मचाए हैं ।…कहते हैं, तुम्हें पता था। तुम सब मिलीभगत हो। सब हमसे छुपाती हो ।…..अब तुम ही बताओ, अगर मुझे पता होता तो क्या मैं छः महीने चुप बैठी रहती। पहले ही रुपया ना भेज देती ।फिर धीरे-धीरे वह भी तो पैसा वापस कर रहा है ।हर रोज हजार दो हजार भर रहा है। लगभग डेढ़ लाख दे चुका ।उसे भी कहते हैं कि ,मैं ही पैसा डाल रही हूं ।मैं कैसे समझाऊं उन्हें ,देखना मुझे एक दिन कुछ हो जाएगा ,तब मालूम होगा इन्हें…….”

ममता मूक श्रोता बनी ,बातों को सुनती रही। उसे घटना के कुछ अंश का पता था पर पूरी बात से वह भी अनजान थी। वह सोचने लगी ,”पूछूं तो बुरा ना लग जाए। ना पूछूं तो व्यवहारिकता के नियम के विरुद्ध हो जाए। क्या करूं?”

उस की चुप्पी को देख मामी ने पुनः अपनी वाणी को जारी रखा।”लगभग 6 महीने पहले की बात है ,रूही के पति ने रूमी से ₹500000 इस बात पर मांगे कि धीरे-धीरे वह उसे वापस कर देगा । उसकी नौकरी छोटी थी,खर्चा नही चलता है। अतः उसने अपना एक व्यवसाय करने की ठानी है। कहने को रोजी और रूही, जुड़वा हैं ।पर दोनों के स्वभाव में बहुत फर्क है ।रोजी को कपड़े पहनने का जितना ही शौक है,रूही में उतनी ही गंभीर सोच है।वह सोच समझ के चलने वाली है। नतीजा यह है कि रोजी का हाथ हमेशा खाली रहता है और रूही का बचत- धन दिनों दिन बढ़ता जा रहा है ।…..शायद इसी बात की भनक रोजी के पति को लगी और उसने हमें न कह कर, रूही से रुपए उधार मांग लिया। मैं तो दे ही सकती थी। मेरा पेंशन भी काफी है ।ना जाने क्यों उसने मुझसे नहीं मांगा और रूही ने भी इस बात को मुझसे छिपा लिया और अपनी मौसी लोगों से बता दिया …आज, सारे रिश्तेदार मेरी खिल्ली उड़ा रहे हैं।कोई मुझसे बात नहीं करता ।किसी का फोन भी नहीं आता ।”कहते कहते एक बार फिर सुधीर की मामी फफक कर रो पड़ी ।

मीता उन्हें बाहों में भर कर उनके आंसू पूछने लगी।”मामी सब समय का फेर है ।जैसे यह समय पहले नहीं था ।उसी तरह समय का बहाव इसे फिर बहाकर ले जाएगा। जब धीरे धीरे रोजी के पति पैसा वापस कर रहे हैं ,तो शीघ्र ही एक दिन सब ठीक हो जाएगा ।”

“कुछ ठीक नहीं होगा ।ये ठीक होने नहीं देंगे ।उनका स्वभाव बहुत अलग है ।बहुत कड़े स्वभाव के हैं ।किसी दिन सच में रोजी के पति को गोली ना मार दें ।….उसका पति तो अब, ना फोन ही उठाता है और ना बात ही करता है ।…ये क्यों नहीं समझते कि पैसा तो आता जाता है पर बच्चों की ज़िंदगी खिलौने जैसी चीज नहीं है ।कहीं वह रोजी को छोड़ ना दे ।. …खुद क्रिमिनल लॉयर है ना, सारी वकालत मुझ पर और बच्चों पर ही उतारते हैं ।….मेरे भी दिल में बात बहुत गहरी बैठ जाती है।आजकाल नींद, खाना सब दूभर हो गया है।न भूख लगती है ना नींद आती है ।लगता है इनका स्वभाव मेरी जान ले लेगा।”

मीता बहुत कठिनाई से खुद को संभाल रही थी।पति का विछोह ,उसे पहले से ही ,उदास कर रखा था। जीवन के तूफानी मोड़ पर वह पहले से ही खड़ी थी ।अब मामा के घर आई विपत्ति ने उसके पैरों तले जमीन को हिला कर रख दिया।

“मैं मामा से बात करूंगी,मामी !…आप अपने को संभालिए।.. आप ही तो मामा की ताकत है। मैं भी तो आप पर ही मानसिक रूप से निर्भर हूँ। यह सब प्रार्रब्ध है ।पिछले जन्म के कर्मों का फल ।…..आज मेरी स्थिति भी तो कुछ ऐसे ही कारण से है । पर कह नहीं सकती कि किस कर्म का फल है!…मैं रोजी के पति से भी बात करूंगी । वह आकर मामा से माफी मांग ले तो सब ठीक हो जाएगा।”मीता ने सुझाव दिया ।

“उसेआने को मत कहना !तुम्हारे मामा बन्दूक उठा लेंगे।”
मामी घबराकर चिल्ला उठी।

” ठीक है ,वह ना आएंगें।…अगर रोजी ही मामा के आगे माफी मांगे…. तो भी आपको आपत्ति है ?”

“रोजी माफी मांगेगी? कभी नहीं! ….मैं जानती हूं ,वह भी अपने पापा की तरह जिद्दी है !…एक बार निर्णय लिया है उसने तो हटेगी नहीं।”

“मैं एक बार उनसे भी बात करके देखती हूं ।…मामा को भी कहूंगी और रोजी को भी, सिनेमा के बहाने अकेले ले जाकर पूछूंगी।.. एक मौका दीजिए मामी !”ममता ने अपने प्रयास का भरोसा दिलाया।

“चाए पियोगी ?…बनाऊँ?” मामी के प्रस्ताव में मिता को दुख की जगह आशा नजर आई ।

“मामा- मामी का कर्ज जरूर उतारुंगी!… उन्होंने मुझे सहारा दिया है !ईश्वर ने एक मौका मुझे दिया है, उनकी खुशी वापस लाने का!…. मैं जरूर कोशिश करूंगी!”मीता सोच में डूब गई।

मीता का मन निश्चय और उत्साह से भर गया ।वह समझ रही थी कि,सब इतना आसान नहीं होगा । पर मामा-मामी के परिवार से मिली ताकत को वह खोना नहीं चाहती थी। आज उनकी उपस्थित की वजह से ही वह अपने घर में रह रही थी ।उसे आभास था कि मामा-मामी दोनों ही उसके लिए महत्वपूर्ण है ।उसे पता था कि मामा के परिवार मे आया कोई भी तूफान , सबसे पहले उसी पर प्रभाव डालेगा। .

उसी रात से, उसने अपना निश्चय बना लिया कि वह प्रतिदिन मामी के पास दोपहर में बैठा करेगी ।उनका दिल हल्का रहे, इसके लिए वह उनसे तरह-तरह की मनोरंजक बात करेगी ।

सुबह का समय उसने मामा के लिए रखा ।मामा रोज मंदिर जाते थे ।और मीता उसी वक्त उनके साथ हो लेती थी। आते-आते लगभग आधा घंटा लगता था ।धीरे धीरे बातों से ही ममता ने मामा के मन में रोजी ही नहीं अपितु सभी बच्चों और परिवार के लिए उन्हें क्षमा करने पर राजी कर लिया ।

“तुम क्या चाहती हो रोजी को बुलाकर मैं कहूँ, कि कोई बात नहीं!… हम तुमको माफ करते हैं !…अच्छा लगेगा?… उसको भी तो चाहिए कि …वह अपने मां बाप का दुख समझे !…अपने पति को समझाए !….पूछे उसने ऐसा क्यों किया?”मामा के स्वर में बदलाव आया।

” मामा ,आप क्यों कहेंगे ?बस थोड़ा समय दीजिए,…थोड़े समय केलिए, आप शांत रहें…..।… गुस्सा हो कर ना बोले बस इतने से ही काम हो जाएगा ।…थोड़े दिन बिल्कुल खामोश हो जाइए !….वादा करती हूं रोजी और रूमी दोनों आपसे माफी मांगेगी!”

मीता ने कह तो दिया पर अंदर ही अंदर वह इस कार्य को पूर्ण करने के लिए, ईश्वर से शक्ति मांग रही थी । अड़चने बहुत थीं । धैर्य से ही वह सुलझ सकता था।पर कोशिश पहाड़ में भी समतल रास्ता बना देती है।प्रारब्ध को जैसे, नेकी से मित्रता हो गई। उस दिन के पश्चात मानो लक्ष्मी और सरस्वती दोनों ने रोजी और रूही को आशीर्वाद देना शुरू कर दिया ।रोजी के पति ने शीघ्र ही सारा कर्ज वापस वापस ही नहीं किया बल्कि उसने अपना छोटा सा नया व्यवसाय शुरू कर लिया। लक्ष्मी की कृपा से उसका व्यवसाय भी अच्छा चल निकला मीता के प्रयास से,मामा की जबान ना सिर्फ मीठी हो गई बल्कि वह मामी का ख्याल भी रखने लगे ।ऐसा लगा मानो सरस्वती और लक्ष्मी दोनों कका आशीर्वाद,मामा मामी के सुख से जुड़ा हुआ था।

चेहरे के भाव मे परिवर्तन देख कर एक दिन ममता ने पूछ ही लिया “क्यों मामी, अब तबीयत कैसी है ?”

इतना कहना था कि,मामी ने मिता को गले से लगा लिया। “मिता,मेरा परिवार सदा तुम्हारा ऋणी रहेगा!यह सब तुम्हारे प्रयास का ही फल है!…ईश्वर तुम्हें लंबी आयु दे !”

“लंबी आयु का आशीर्वाद ना दे ,मामी!..मेरा जीवन ऐसे ही बहुत लंबा लगता है । किसके लिए जिऊँ?क्यों जिऊँ?…अब जीने की इच्छा नहीं होती !”मिता , अपने जीवन की व्यथा को रोक न सकी।
“ऐसे क्यों कहती हो ,मिता?… तुम ही ने तो कहा था कि सब प्रारब्ध है । समय का उतार चढाव है!… तुमने,हमारी खुशी लिए शांति और प्रेम का इतना बडा प्रयास किया।… तुम हमारे परिवार का हिस्सा हो!…तुम खुश रहो,हम तुम्हारे लिए भी ऐसा ही प्रयास करेंगे!” मामी के शब्द आज निश्चित रूप से उत्साहवर्धक थे।
” क्या हुआ मामी आज तो आप ठीक लग रही हैं !…क्या सब सुलझ गया? क्या रोजी के पति को मामा ने माफ कर दिया?” ममता ने पूछा ।

“तुम्हारे प्रयास ने रोजी में इतना बड़ा परिवर्तन दिखाया कि दो रोज पहले अपने पापा के सामने जाकर, उनसे माफी मांगी ! मैं तो खुद अचंभित थी।…जो रोजी अपने पापा को सीधे मुंह जवाब नहीं देती थी ,वह उनके पैर पर पढ़कर,माफी मांगी!….”

” कैसे हुआ यह सब?”… ममता भी जैसे इस जादुई चमत्कार से अचंभित थी ।

” जाने क्यों,तुम्हारे मामा इधर बहुत चुप रहने लगे हैं । घर का वातावरण ही बदल गया है।न ज्यादा बोलते हैं, न कुछ कहते हैं।…पता नहीं उनके इस बदलाव का क्या असर पड़ा, रोजी पर कि एक रात,..वह सोने जा रहे थे कि रोजी ने उनसे कुछ बात करने की इच्छा जाहिर की ।…तुम्हारे मामा उसे देखने लगे। शांत स्वर में उन्होंने पूछा,” क्या है”, बस इतना कहना था कि रोजी उनके पैरों में गिर पड़ी और रोने लगी।.. कुछ देर मामा देखते रहे फिर उन्होंने बड़े स्नेह से उठाया और कहा” जाओ सो जाओ। कल बात करेंगे।”… मैं वहीं पर थी। मैं तो आशंका से भर गई थी कि कहीं फिर वह अपना रूद्र रूप धारण न करें।.. पर दूसरे रोज जब पुनः रोजी आई तो मामा ने उसे अपने पति को बुलाने को कहा। बड़े हिचक के साथ,कल रात वहआया भी और ईश्वरीय शक्ति ने उसे निर्भयता से हमारे सामने खड़ा कर दिया ।तुम्हारे मामा चुपचाप उठे और बेटी दामाद दोनों के कंधे पर हाथ रख कर कुछ देर खड़े रहे । फिर दोनों के सिर पर हाथ फेर कर अपने कमरे में चले गए।….सब ठीक हो गया ममता !…अब सब ठीक हो गया…!”

दोनों बहुत देर तक एक दूसरे का हाथ पकड़कर बैढीं रहीं।
“ढीक है मामी मैं चलती हूँ” मीता ने धीरे से हाथ छुडा कर उढना चाहा तो एक झटके से उसे मामी ने गले लगा लिया
जब मकसद सद्भाव और परहित सहानुभूति का होता है तो नियति भी अपने रोड़े पत्थर चूर कर सुख-समृद्धि भर देती है।
दोनों ,मिता और सुधीर की मामी गले लग कर देर तक आंसू बहाती रहीं ।

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