देखोअस्तांचल का अति सुर्ख हुआ ये सूरज ,
रंग रक्त-जवा का नभ भर,करता है प्रेम अरज।
विशाल-आकाश संध्या का , सिन्दूरी है रंग देता ,
सनेह पत्र ,भर कोमल अनुमोदन,प्रीता को भेजता।
ओढ सुहानी चांदनी, तारों भरी चान्दी की चूनर
बजाती पायल, चल रही वह ठुमक-ठुमक कर।
माँ की लोरी, ममता सिंचित,संजोय कोमल मीठा रस,
सलोने की आखो में रंगता, सुख-सपना बसंत सरस।
बिदा दीपक को करने,लाली प्रातः हैआती जब,
उदित-सूर्य पदार्पण करता,सप्त अश्व रथ पर सज।