मिलन चिरंतन-2

अभी अभी बस निधीवन मे श्रीराधा को छोड़

पार कर रहे थे द्रुत गति वृन्दावन गलियन मोड

ले रहे थे कदम,स्फूर्ति के साथ समय से होड,

गय थे समझाने,पर बांध लिए फिर रिश्ते की डोर।

तभी दूर से आती कुछ पहचानी टापो ने झकझोरा

अनगिनत सुरभि ने बछडो संग, कान्हा को ले घेरा।

प्रेम पगी गायो के थन,स्वतःबह रही थी अमृत धारा।

पहुंच समक्ष, भरआखो मे नीर,”कृष्ण”नाम  रम्भाया।

किन्चित नेह बंधन मे बंधा,अपने को द्वारकानाथ ने पाया

प्रेम से थपथपा कर उनको,स्वतः मुरली ने  सुर ऐसा  साधा

सुन ,गूंजती वेणु की धुन, सारा वृन्दावन  जागा ।

सपने से जागी जैसे मैया,पुकारी”क्या मेरा कान्हा आया?”

लगी बिलोनेदूध मलाई, ढेरो दुलार की मिश्री मिलाई।

लिए  कटोरा उठाता,दौड़ पडी बौराई,आगंन द्वार खुलवाया

बाहर नाच रहे थे गोप- गोपि भूल करअपना सरमाया

सखा-संसार की  देखेआतुरता,जादूगर  वह मंद मुस्काया,

आगे थे नटवर गिरधारी,चल रहा  पीछे सारा वृन्दावन खेमा

तभी अचम्भित होकर जैसे सपना सा सबने देखा

पुनः एकबार परब्रम्ह  ने विराट रूप जो दिखलाया

चर अचर, सम्पूर्ण मृदा नेअपने को उसमे पाया

विक्रांत रूप था उस छण उसका,फिर भी सबके मन भाया

निढाल, देख रहे थे सब उनका विचित्र रूप  अनोखा

मूदं आखे,,उनमे समा,बन गये सब योगी सी काया

पल भर मे ही सारा गोकुल परब्रह्म  रज रंजित हुआ।

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