स्मित मिलन

दिन ढल रहा है अब,फैल रहा रगं नारंगी

सिमट रहा कोने मेआदित्य ले किरणे सतरंगी।

लगा गोरी राधा समा रही थी कृष्ण आगोश

नाच रहा थे नीले श्याम ,मनोहर नटवर नागेश।

मुख कमलिनी का ,लज्जा ने मलिन किया

सुकुमारी का तन गहराया,नभ श्यामल हुआ।

पूछा  बजती वेणू ने रुक कर, होअति असहज

“पाती हो राधे क्या तुम, दिन रात,नंद को यू भज?

सावले के रंग से देख कैसी ,तु बनी कमलनी मुरझाई

ढूढती फिर क्यो जादूगर को,मधुवन ,कुंज ,गली अमराई?”

रुक गई  इक पल को कुछ ,फिर छिटका मधुर छटा

लगी गाने गीत अप्सरा सी,बादलों सेआकाश बटा।

वृन्दावन सहसा उतर आऐ श्यामल सरकार रास रचैया,

पैजनी अनेक लगी बजने, ग्वाल बाल गोपी बने गवैया ।

कहा राधा ने “धर्म-कर्म-राग-रंग-रास-रिश्ता सब

सर्वस्व वासुदेव में पाया ,अपने विश्वास का रब ।

बची न दीनता ,बाकि न कोई खोज, न अतृप्त जिज्ञासा

मिल गए जबसे श्यामल , तृप्त हो गई सारी पिपासा।”

शमा सिंहा

06-01-2021

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