बीत गए दिन है अनेक, पर भूली नही है ,सहेजी वह याद,
विस्मृत न हुआ कभी क्षण भर को भी वह सजल विशाद।
नवल सजा था मेरा कोमल मन, अमराई भरा प्रासाद ,
भर गया था सहसा हृदय मे, उमंगित यौवन का आह्वाद।
पहल कर रहे थे पिता पूज्यनीय, मेरा प्रस्तावित विवाह रिश्ता
पींगे लेने लगा हृदय प्रेम यू जैसेआयेगा जैसे कोई फरिश्ता ।
संयोग कुछ यू बना,एक-दूजे को ही हमने था बस देखा
अबोध निर्मलता ने बाध लिया अन्जाने से ,जन्म जन्म का रिश्ता ।
न जानती थी वह अल्हड़, रह जाएगा अधूरा सफर का यह स्कंद
कुछ ही समय चल कर टूट जाएगा, मधुर वह सम्बन्ध ।
अविभावकीय संवाद का हुआ सहसा ऐसा विच्छेद
टूटा कट कर वृक्ष हरा जैसे,काल सींचता रहा अश्रू खेत।
डूब गये मन दोनो मानस के,ङ लज्जा वश चुप थी जुबान
चाह कर भी न बचा सकी नवनिर्मित हरितकुंज का निशान ।
होना पडा विदा दोनो को,शीघ्र मात पिता की इच्छा के संग
रहा कसकता हृदय जीवन भर, जैसे बिछडा जोडा विहंग।