कलियों का निमंत्रण

“कलियों का निमंत्रण”

कह रहीं रंग भरी ये उत्साहित कलियाँ, अधखिली

जाओ न अब तुम दूर,खिलने को हम व्याकुल अति ।

आये हैं बरसाने को भर आचंल, नौ रस तेरी बगिया में सारी

याद करो वह भी दिन थे,जूझ रही थी,सूखी, नीरस डाली।

फूलों का खिलना, सपना लेकर जीता था वह माली।

किसलय को ही पाकर,रोमांच भर लेता था अपनी झोली।

आज लगी भीड़ अनोखी, देखने कुसुमिल नन्ही परियों
को!

पुलक रहीं हैं,किलक रहीं हैं, हैं अति उमंगित खुलने को!

ले पेंग उडेगी डाली अब पाकर मदमाती संग पवन को!

सजग ये पत्ते ,पूछ रहे,”क्या हुआ है,अचानक इन कलियों को?”

क्यों कभी सिकुडती, कभी मचलती येअनोखे मंचन को,

हो रही मदहोश हवा, थिरक रही,लेकर इनकी खुशबू को।”

कहा सूर्य ने, “नही दोष कुछ इनका,पुनःमिला नूतन निमंत्रण सुप्त बसंत को!”

वो काली भूरी चंचल तितली तत्पर, उड चली बताने सबको।

“आना मित्रों सज सवर कर, बगिया के उत्सव में थिरकने को!”

फिर क्या था, हटात् ही कदम रुक गये बसंत पुनरावरण देखने को,

हौसला वह अप्रतिम प्रकृति का, कोमल,निर्झर निर्मल आनंद पाने को!

शमा सिंहा
15.1.19

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *