जाने क्यों?

ज़िन्दगी  बड़े  हौसले से शुरु होती है

बधाईयं और शहनाईयों का जश्न होती है

फिर  आता है गोद से  उतर कर ज़मीनी  रास्ता,

जाने कब हवा की झोंक में गुजरात है बचपन ,

और चढ जाता है चाहतों का नशीला रंग।

नित नई गठरियां कंधों से लटकती हैं,

वो मासूमियत, वो उल्लास, जाने कहां चले जाते हैं

दुआयें, हौसले, मासूम किलकारियां,वो गीत खो जाते है

अधूरे सपने,अधूरी सासें!आदत हो जाती है।

अपनी और  उसकी तरक्की की माप मे आदमी खो जाता है

वो छोटी छोटी,बिना वजह  जश्न मनाने की आदतें

वो उछलते कदम, वो बेबाक मचलने की आदतें

सब दूर निकल , सहसाजाने कहां खो जाते हैं

क्यों ऐसा होता है,क्यों उम्र  हमे दूर कर जाती है?

हम तराजू के पलड़ो को बराबर करते रहते हैं

और अचानक  साँसें  पंख पेरू बन उडं जाती है!

Shama Sinha
   Jan.2018

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *