नमन प्रसन्नचित्त होकर करती क्योंकर तुमको,
कारण बहुत हैं,पर प्रमुख एक बताऊं सबको।
चित् चंचल,व्यग्र हो तो हलवाई के घर जाओ,
गर्म मीठे रस मे होली खेलते दुलारो को जो पाओ,
आगे नही बढना ,”नन्हे गुलाबो “पर बस आंख टिकाओ।
जैसे जैसे तैराकों की छवि,आंखों पर छायेगी,
उनको देखने भर से,विपत्ति दूर हो जाएगी।
आ!हा!हा!कितने सुन्दर लिबास मे,चहूं ओर चमकते,
गोल मटोल चिकने जैसे मक्खन पंखुरी पहनते।
ऐसे में हलवाई का है जग के प्रति सौहार्द धर्म,
चट परोस देवे समक्ष,समझ ग्राहक का अन्तः मर्म।
सिक्को की न करे अपेक्षा,दयानंद वह बन जाए,
अपनी भलमनसाहत दिखा,महादानी कहलाये।
बस ध्यान इतना रखना और,जल भोग न करवाना,
वर्ना मिटी मिठास को वापस लाने का देना होगा हर्जाना!
पानी के संग मिठास ले पच जायेगा लल्ला जामुन,
धुल जायेगी तिजोरी हलवाई की,बिन साबुन बिन पानी!
शमा सिन्हा
2-1-2022