काश शाम नही आती,दिनकर उजाला हि रहता
कुछ तो आस जगी रहती,मन उदास नही होता।
बीत गई बाते,कह कह कर निश्चित,सबका है जाना।
फिर क्यो बन मन की पीड़ा,बार बार वही है दोहराना?
क्या सच मानव कठपुतली बन यहां जीवन है जीता
पूछ रहा राधा क घायल मन,वेणूमन भी है रीता।
कृष्ण का विक्षिप्त तन-मन बार बार है दोहराता
लौटने का वादा कर आंचल से जिसने सबको साधे!
गोप गोपियां मतवाले है किससे पता उसका किससे पूछे
सुर भी खोया धुन भी खोया,असुवन कैसे पोछवाये