“कहो न तुम हो अकेले!”
कभी कहो नहीं तुम हो बिलकुल अकेले
तुम न बुलाओ फिर भी वह साथ सदा हो लेते
हो जिनके तुम अंश, वही तुम्हारी प्रियांश
उनके अस्तित्व को मारो ना दुख दंश!
आना जाना मिलना जुलना सब है एक खेल।
प्रेम -विलाप बनता रंगों का, इंद्रधनुष बेमेल।
तत्व वही एक है ,वही एक है चेतन शक्ति
स्वीकारो एक उसी को शेष है निरर्थक आसक्ति!
कहो किसी ने क्यों तुम्हें है सुख का भाव दिया?
फिर अचानक सम्बन्ध मधुर क्यों उससे बन गया?
कभी बिना कारण मन बैरी बन दिन-रात व्यस्त हुआ,
पिछले यात्रा का हिसाब समझ कर दो चित् से दफा!
कोई नहीं है मित्र ,ना कोई है किसी का शत्रु,
अपने अपने पथ के गामी, चुनकर करो यात्रा शुरू!
विचार पसंद ना आए किसी का, छोड़ो उसको वही
आगे बढ़कर ,देखो ना पीछे, यादों को भी रोपो वही!
थमें न दुख की बाढ़ अगर प्रभु का नाम ले लो।
रहो पुकारते कृष्ण लला को, उनके पद में जा बिछो
बिना बुलाये,वह आ जाएंगे तब ना तुम चौक ना!
प्रशस्त राह के सहगामी तेरे यह सत्य न कभी भूलना!
मात पिता बंधु सखा वही मित्र हैं अनेक तुम्हारे
उससे ही जोड़ों नेह, वही हैं सदा सबके सहारे!
शमा सिन्हा
8-1-2022