ये मन बडा ढीठ है,प्रकृति का
कोई बात कभी नही मानता।
ज्ञान की पोथी पढ़ बैठ जाता है
सारे मसले सुलझाना चाहता है ।
तथ्य जान लेने से निदान नही मिलता
बहुत छिपा है जीवन तथ्यसार में!
कर्म-भोग एक बार मे नही होता खत्म ,
कई कड़ि जुटी रहती लगातार ,साथ में।
प्र्यास की दौड़ में,जिन्दगी होती खत्म ,
आदमी समझता है मंजिल आ गई
सांस रोक कर जीव सुस्ताते है सब
नई गोद में क्रंदन से शुरू करने को सफर!