अपनी करनी से सबको है छला
छवि मधुर ऐसी है तुम्हारी लल्ला
नन्हे पैरों मे बंधे घुँघरू छमकाते
पकड़ बछिया की पूछ लटकते
धुटने बल,बलदाऊ संग मिट्टी मे सरकते
झूले पर बैठ ,जैसे बालक पींगे भरते।
निर्बल बछडा जो व्याकुल हो दौड़ता
बन्धी रस्सी बल लगा छुडाना चाहता
तुम दोनो अपनाऔर जोर लगाते
बेदर्द बने उसकी पूंछ पर लटकते।