अचम्भित हू घटनाक्रम की कडियों से
क्या होगा कल,जब चली जाउंगी यहां से
प्रश्न बडा कंटीला,रंगता मन को गहरा ग्लान
विचारों के भवर में जैसे फंसा हुआ है प्राण!
कौन तुम्हारे भूख प्यास का रखेगा ध्यान ?
कौन तुम्हारे मुरझाने पर करेगा अश्रु पान?
दूर रहूंगी तुमसे,ले न सकूंगी तुम्हारा हाल ,
हर पल तेरी सूरत का करती रहूँगी ख्याल !
रह कर दूर तुमसे,मिलता नही मुझे सकून,
मन विचलित हो जाता है,तेरा नाम सुन!
अकेलापन सताता मुझको,याद बच्चों की आती
तब अचानक लौटने को,मन मेरा है करता।
क्या कहू कैसे सुलझा,विकट बनी है पहेली,
तुझे सुनाती हूं,तूही तो है ,मेरी सखी गहरी!
मन हल्का करने को तुमसे ,मन की मैंने कहली!
इतना कोमल उसने तुझे रचा है,रक्षा वही करेगा
चरणो मे है विश्वास हमारी मांगों की पूर्ती वही करेगा!