ओम “ओ पाखी!” है कितनी बातें,तेरे पास ,ओ पाखी!प्रातः उठते ही फुदकती , चहचहाती! दुनिया को क्या मौसम की सूचना हो देती ? या मिल कर दिनचर्या की योजना बनाती? उगते ग्रीष्म सूर्य से क्या तू परेशान नही होती? चुपचाप बैठ घने पेड़ों में,स्फूर्ति क्यो नही बटोरती? रखा है तेरे लिए, दाना और सकोरे मे पानी चुग लेनाआकर,दो बूंद सही पी लेना गौरैया रानी! मुझे तो कुछ नही दीखता,तू क्या है चुगती? चंचल ढूढ़ती आखों से तू जाने क्या है पाती। चूं चूं ,चींचीं,कुहुक कुहुक कर जाने कौन सा राग सुनाती तेरी भाषा जो समझ लेती,मै संग तेरे बतियाती! होता कितना समय मनोरम,तुम और मै ढेरों बातें करतीं , तुम अपनी उडान बताती,कह सुनकर दोनों कितना हंसतीं! दे देती दो पंखो अपने,तेरे ही संग मैभी उड़ चलती! ऊंचे पहाड़,बादल बीच फूलों के बाग देख हम आतीं! सच मानो,रोज सुबह, बाट तेरा मै ब्याकुल हो,जोहती, तेरी मीठी बोली सुन,बीच डालियों में, तुझे हूं खोजती! फड़फड़ा कर पंख,कभी चकमा भुझे जो तू है दे जाती, चकरा कर, ऊचाईयों में,तुझे खोजती मैं रहती, ऐ पाखी,कभी आवाज तेरी सीटी सी क्यो हैलगती, हड़बड़ाहट सी होती है,लज्जा से मै हूं सिकुड़ती। मेरे आंगन की तू लक्खी,करती घर-मन गुंजार, हरे भरे मेरे इन वृक्षों की, गूंज तेरी करती नव-श्रृंगार ! ओ परी नन्ही सी!आ इन फूलो का मधु-रस तो पीले! इनकी कोमल पंखुड़ियों को,अपने स्पर्श से दुलार ले! प्रतीक्षा में तेरी ,गर्दन इनकी झुक सी है जाती, झूलने को डाली के झूले पर ,राह तेरा ही निहारती। दाना भी है कह रहा,”आ जाओ बन मेरी मेहमान , स्वच्छ शीतल जल है , थकी हो,कर लो इसका पान!” “आज न आ सको तो, कल जरूर तुम आना, छुपकर ही सही,डाली पर बैठ मधुर गीत सुनाना!” शमा सिन्हा 22-4-22