“कद ना नापो”
श्यामल मेघआच्छादित फुहारों तले,
टिप टिप बूंन्दो से बिंधती ,कोपलें
मिढ्ढी में धसी दूब ने सहसा पुकारा,
“कभी मुझसे भी हाथ मिलाया करो,
माना, तुम्हारा कद है ऊंचा बहुत, पर
इन लंबे दरख्तों को शर्मसार न करो ।
ये भी,झाडिय़ों के बीच से निकल कर
हंसते हुये लताओं के साथ बढतीं हैं।
तुम इंसा, भूलकर सत्य ,मुझपर चलते हो।
मन को मन मे रख,हम हैं बस मुसकुराते।
मिढ्ढी की है काया,इसे क्यों हो भूल जाते।
स्वरुप यह तुम्हारा,बस पडाव है सफर का,
किस को पता, कल रौंदेगा कौन ,किसके सिर को?”
जिन्दगी , असीम खुशी का सपना है
हाथों को हाथ से, दिल को दिल से
बस चुपके से लेना-देना सीख ल़ें।
कौन किससे है बडा भूलकर , इकबार
कदमों तले रुंद कर भी जीना सीख लें ।”
शमा सिन्हा
4/8/18
शमा सिन्हा
4/ 8/18