सजल सरल चंचल ये हवायें
इस बैशाख मे ठण्डी बनायें
रोक उन्हे लूंगी अपने बगीचे में,
कहूंगी आज इन पौधे को भरमायें ।
गर्मी ने ली मदमस्त अंगड़ाई
बांह पसार अपनी शक्ति दिखलाई
तपिश खींच,सविता के किरणो की
अनमना ढीठ हो गयाआकाश भी!
छोड दिया परिन्दों ने ऊंची सैर
रहते पत्तो बीच जमा डाली पर पैर!
धरा धूल,हवा संग उड़ रही लहर
ताप एक सा बना,दिन के हर प्रहर!
भर रहा पानी उडान यू देखोआकाश ,
छुप कर है बैठे,बाहर फैला है प्रकाश
सिकुड़ गये छाया मे पंछी करें प्रवास।
द्रुत कदम चलते बच्चे,होता जब संकाश !
मटका बना ,आधार पिपासा संतुष्टी
नभ पर है आस,आखें तक रही वृष्टि
तन पर ढका मलमल,कर रहा तुष्टि
बना प्रिय है ठंडा जल ,सबकी मिश्री।
तय सफर कर देखो बादल है आये
पश्चिम से पूर्व संग अर्णव सागर लाए
समीर भर नीर ,समेट आंचल में,फैलाये,
ठंडी बनी हवा इतनी,अमृत कहलाये!
शमा सिन्हा
21-4-22