रे मन,तू ही तो है इक मेरा है अपना
तुझमें बसे कान्हा, अनमोल जीवन का सपना!
सुनता है इक तू ही तो,अनबोले मेरे बैन,
रक्षित तुझमें, मेरे हर भाव, विलक्षण तेरे नयन!
बन कर मीत अनन्य, करता है नित नूतन बात,
सहलाते सद्भाव जैसे तेरे मीठे हाथ!
रिक्त मेरे हर पल को मधु-कल्पना से है भरता,
नव पथ पर सम्भल कर,चलना तू सिखाता।
नश्तर जब करते आहत तो बन साथी सहलाता,
दुखते हृदय तारों को,कोमल राग सुनाता ।
रिसते कितने घावों को तूने है सम्भाला,
मोहन की बंसी बन, जीवन में अमृत है घोला।
उमड़ती बेचैनी को,धैर्य से
तूने ही तो है धो डाला,
लिख नई कलम से नूतन शब्द उजाला नया भर डाला!
तेरे बिन, रे मन! मैं आधी भी न रह जाऊंगी,
जो ना होगा तू संग मेरे तो, मैं श्वास भी ना ले पाऊंगी !
शमा सिन्हा
8-10-2022