चरैवेति चारैवेति” देखो,जनमानस में आई नई जागृती चल पड़ी हैअब ,सूनी पड़ी सड़कें भी अर्थहीन बनी, COVID19 छाया भी निर्भीक वज्र-हस्तआस की,है जगी। कई बार आये हैं, पहले भी विक्रांत बहाव, धीर-सहष्णुता ने डालने दिया न पड़ाव, ढीला न किया समाज ने साहसी कसाव, “विश्वास,बसंत आएगा”भर रहा है घाव। मनु -संतान भयभीत न कभी है हुई,, पहाड भी कदम न उसके रोक सकी , है बिसात क्या,इस छुद्र जिवाणुकी ? खुदIयी से डरा,खौफ उड़ाता है नकली कष्टों को भारती नही हैं कभी गिनते, बना मित्र उन्हें,हौसला लेआगे ही बढ़ते! जीत कर उजाला हम सदा हँसते ही रहते, उम्मीद-धैर्य से सजा,खुशियों को हैं जगाते। अब सुनी गालियाँ पुनः हैं महकने लगी, घर घर से आ रहि गूँज हँसी की ऊंची। गीत सज रहे श्रमिकों के होथो पर भी पढ़ रहे पाठ है बच्चे, “चरैवेति चरैवेति!” बीती रात्रि,खोया है हमने बहुत कुछ रोटी रोजी काल-स्थिरता गई थी बुझ! अब बढ़ेंगे मिलकर ,स्मृतियो को तज! नया उत्साह,निर्झर निर्मल धारा सज! शाम सिन्हा 1-6-’20