मात्री दिवस पर-मेरे अनमोल पल! वह मनाती नित त्योहार है ,अपने उस संसार का सजा उसका एक घरौंदा है, स्नेह भरा संतानों का! नाम अनेक पर वह एक ही रुप मे सगर है बसती, स्नेह दान का व्रत अखंड ,कभी नही वह हैतोडती। अविस्मरणीय होते हैं उसके कुछ आलोकित पल, आजीवन संजो रखती जैसे पुष्प,पंखुड़ियों के दल! जब भी वह पल वह पल याद आता है सब जैसे, वैसा ही जीवित हो जाता है वह घड़ी इंतजार व्याकुलता की अनुभव वह साकार ,छवि है होता आंखों में सपना सहसा भर है जाता हटात् ही मुझे असीम खुशी दे है जाता गर्व से सिर ऊंचा चित् संतोष से भर है जाता , सजीव संसार सजेगा, सोच मन है भरमाता अनुपम कृति मैंने जिसको आकार है दिया अपनी तन से जिसके तन को मैंने साकार किया गूंजेगी उसकी किलकारी वह होगा गोद हमारे बहलाने को उसे दिखाऊंगी टिम टिम नभ के तारे घर सारा, बिखरा देगा यह सोच कभी खीज जाती कर ना सकूंगी मैं कोई काम,कमै विचलित होजाती कुछ नहीं बस उसके पीछे दौड़ते तब हो जाएगी शाम किंतु यह क्या कम होगा ,मेरे घर आऐंगे ललना राम? ज्यादा तंग करेंगे तो जोर से पकडूंगी उसके कान ढुमक ठुमक भागेंगेतो रखलूंगी उसकी जि़द का मान यह सपना इंतजार का भर देता है सुख से हर धाम आस देखते ,बातें करते बीतता हर पल हर शाम ……… रात का बस ढाई-तीन ही बजा था सारा घर शांत निद्रामग्न सोया था सहसा हुई आहट,लगा वह है आने वाला, नटखट कृष्ण सा दिखा वह नंदलाला! शीघ्र उठा दिया मात पिता को बिस्तर से, कहा उन्हें चलने को अस्पताल जल्दी से! हड़बड़ा कर पहुंचे हम दूर डॉक्टर के घर, देख हमें कहा उसने “अभी देरी है, प्रसूति पर!” “भरती कर दो ड्रिप चलेगा ,नर्स,डाक्टर आयेगा, तैयारी में टाइम लगेगा,तबतक बच्चा हो जाएगा!” अभी अभी स्ट्रक्चर पर लेटाया, पर यह क्या, “बच्चा बाहर आ गया है !”नर्स ने चिल्लाया. शीघ्र पूरी हुई प्रक्रिया जैसे कृष्ण ने दी मंजूरी गोद हमारे वह जब आया ,मेरी हुई मन्नत पूरी! ………. बीता सात वर्ष छह महीने, पुनः सुख आनंद छाया सौभाग्य उदित बाल जन्म का, फिर मेरे आंगन आया! प्रातः पहुंचे हम सब चैनित नर्सिंग होम के द्वारे साथ साथी , अग्रज, सब,सजा सपना नैनो मेँ, पिछली बार का अनुभव ,सबने था जाना , पड़ा ना इस बार किसी को नया कुछ भी बताना हाथों में इकबार मुझे,प्रभु ने फिर लिया थाम संकल्प पूर्ण हुआ, संतोष जनित वह शुभ काम। इस बार थी यश सौभाग्य लेकर वैभव लक्ष्मी आई! शुभ आशीष पूर्ण कामना पाकर मैं फिर मां बन पाई! कितनी खुशी ,उमंग , सुख की धूप, मेरेआंचल खिली, शब्द नहीं बताऊँ, तबसे कैसी असीम खुशी है मिली!