“मिलन चिरंतन” यह कविता मैंने अपनी कल्पना के आधार पर लिखा है।
महाभारत युद्ध के बाद द्वारिका के लिए प्रस्थान करते समय,रास्ते से मुड़कर, कृष्ण जरूर वृन्दावन-मथुरा गये होंगे-नंद, यशोदा, गोपीयो से मिलने। राधा मिलन का काल्पनिक चित्र ,यहाँ मैंने अभिव्यक्त किया है।
“मिलन चिरंतन “
व्यथित चित, टूटा द्वारिकाधीश का धैर्य धन
स्थिर, रह सका न पल भर ,माधव का बेचैन मन,
श्याम-घन घिरे थे, फिर भी चल दिए पथ वृन्दावन।
राह तकते,ढूढती आँखे,उत्सुक थी किशोरी मिलन।
जमुना तट,वट छैया देख,पूछा “क्यो हो इस हाल में ?”
“आह, श्याम आये आज,फिर क्यो हमसे नेह जोड़ने?”
प्रेम आतुर हो झाँका नंदन ने,लली के विव्हल नैनो में ।
चंचल चितवन, बांह थाम,ले चलें राधा को निधि वन में।
वह निश्चेष्ट ,सहमी हुई,बढा रही थी अपने धीर कदम।
बैन न थे कहने को ,संजोये थे दोनों ने अथक अपनापन।
भींग गया अंग वस्र ,व्यथित हृदय से बहा जो अश्रू धन।
अस्त सूर्य, मध्यम प्रकाश बह रह था मधुमय प्रेम पवन,
देख छटा, रात्री उतरी, सितारों जड़ित चुनरी पहन।
स्नेहिल कर से ,माधव ने किया रौशन तारा एक चयन।
लगाई उसकी बिंदी माथे तो, भींगे गये दोनों के नयन।
रुक न सका नीर आँखों का,कटि रात्री बिना शयन।
हाथ थाम,एक दूजे को तकते,हुआ न शब्द सम्भाषण।
मुग्ध रात थी देख, प्रेमी युगल हृदय न अब था बेचैन,
अद्वितीय योग ,समझ लिया दोनों ने, एक दूजे का मन।
ऐश्वर्य आत्मग्यान का पाकर ,समृद्ध हुआ दो अन्तर्मन,
मुक्त हुई अभिलाषा, स्थिर समभाव, अर्थ हुआ स्थापन।
विरह- मिलन,जन्म -मृत्यु, सब पचं तत्व का है रुदन!
संयोग चिरंतन अद्वैत हुआ, बन गये दोनों अद्वैतम!
शमा सिन्हा
16-10-’20

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