नील-मणि-अपराजिता

नील मणी बनकर तू आई! … Continue reading »नील-मणि-अपराजिता

नभ से नीली, तुुषार सी ललित यह नीलमणि,

शीती-पांख सजा, डोल रही है गर्वित दामिनी!

घूंघर तंतु पर छेेड रही सौंदर्य रस प्रीत लहरी,

पल्लव बिंंधी,झलका रही नीलाम्बर मनोहरी!

बात इक बताअपराजिता, तू नटखट,तू है रसीली,

है अद्भुत रूप तेरा, नभ से जैैसे उतरी परी तितली?

प्रति दिन प्रातः, इस कौतुक को मैं देर तक निहारती,

लगता, परदेेसी पांखी भूूल रास्ता, आई कोई उडती!

छुपती हरित तनों बीच,बुन कर कोठरी अनोखी,

कभी डालियों संग डोलती, फड़फड़ाती पंखुड़ी।

बन कर तुम मेहमान, लतिका को हो भरमाने आई,

छुपा छुपी की रच पहेली, देेव-मधुर सा तान लहराई!

ओ चंचला,क्योंकर तुम अपना यौवन हो यूं पसराई,

गूंथ डाल,क्या ऋतुु-राज को मणीमाला पहनाने आई?

बड़ी निडर हो, हर पल इठलाती,रहती क्यों मुस्काती,

ओ मोहनी!बसा छवि मन में,तुम सबकुछ,हो हर लेती!

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