बीते घंटे अनगिनत,फिर वापस आ गई यहां
छूटा बाग, कलियां गिन सुबह बीतती थी जहां।
अब कहना नहीकुछ भी है जिन्दगी को मुझे
दिया सब कुछ उसने,मेरा हौसला- जुनून न बुझे!
अब सब चाहतो से,रुुहे-चाहत है अचानक टूट गई ,
रब से बस नये सफर,नये जीवन की चाहत है जगी।
बाहर की रौशनी में ढेरों है जली हुई शमा
अंतर्मन फिर क्यों हो गया है यूं बेजार ख़फा?
देखती जब भी करते लोगों को नीड़ का निर्माण
जाने क्यो खोजती हूं,उसके भविष्य का प्रमाण?
चाहती बता दूं जिन्दगी की बुजदिली का किस्सा,
समझा कर बताना, मांगना ना सपनों का हिस्सा!
क्या पता हौसले न बना पाये यथार्थचित्र घरौंदा,
छोड़ कर घोंसला उड़ जाए एक रोज एक परिंदा !
बचे दिन,अकेला पंछी फिर खाक़ फिरेगा छानता!
जीना पड़ेगा छोड़ सपने सारे जिन्हे वह था पालता।
बेमुरव्वत है तकदीर, ख्वाहिश तोड़ना जानती हैॅ।।!
मतलब नही उसे किसी की खुशियों के लम्हों से है।
बसंत के बाद,बादलों को खोजने चल देती चिड़िया
आस तकती आम्रवन में पुकारती रहती है कोयलिया!
गिरॅकर सूखते है फूल, पंखुड़ी उड़ा ले जाता है पवन
बिछुड़ते हैं साथी,कितना भी अटूट हो प्रीत समर्पण !