तुम क्यों आते हो?

ऐ बादल तुम क्यों आते हो?

नही बरसना तो क्यों छाते हो?

ताकतवर इतने भी नही हो तुम!

सूर्य अवहेलना नही कर सकते तुम !

चढ गये ऊंचाई आकाश की तो क्या!

रवि किरणों का आक्रोश भूल गये क्या?

तुम पले समुद्र की बांह-विशाल  में थे

कर आये,क्षीर- पान उसकी छाती से

,

फिर उड़े पवन संग-स्नेह हिंडोले में थे,

बैैढ कभी आदित्य कांधे, सैर को निकले ।

अभिमान तुम्हें किस बात का है फिर?

गड़ गड़ गर्जन फिर किस आपात का है ?

बस शोर मचाना तुम हो जानते ,

रस- बूंदन बरसाना ना तुम सीख सके!

है दम तो झरने सा बनकर दिखाओ

कुछ तो अपनी भी लाज बचाओ!

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