सब्ज बाग की खिलती कलियों से मैनें पूछा
यूं अचानक तुम सब अकेले आई कैसे आई?
कल तक हर डाली थी विरान और खाली ,
अकस्मात कैसे मुस्काई तुम्हारी सब सहेली!
सूना था बागीचा,टूटी थी किसलय की आशा
जाने कैसे सुन ली तुमने मेरे मन की आकांक्षा!
हर डाली पर गुलदस्ता बन छाई
पल भर में इतनी सहेलियों को कहां से ले आई?
क्या मेरे मन का तार जुडा तेरी जड़ से
जो पंखुड़ियों को तेरी,रखे जोड़ पत्री टही
सूना था बगीचा अनुपस्थित थी पूर्व की। क
त