मेरा परिवार, मेरी ताकत!
मेेरी आखें थी नींद से बोझिल,
सामने पड़ी खुली किताब थी,
सहसा स्नेह स्पर्श,नयन सजल,
लेेकर बुलाने आई मेरी मां थी!
“कल भी पर्चा देने भूखी ही गई थी।
क्या यूहीं जगी आखों से रात काटोगी?
चलो,साथ मिलकर दो कौर खालें!”
पाकर स्नेह ,मन हुआ ममता के हवाले!
वही है नींव,स्थिर चेतना शक्तिपीठ !
हर परीक्षा में ,हर स्तिथि में वही सबकी मीत!
परिवार की प्रभा- प्रतिम,आता उसे गांठ मिटाना,
कठिनाई में भी जानती वही कुल समेटना !
एक मां ही रचती ऐसा जागृत परिवार ,
पाषाण सा होता नींव ,छत,चारो दिवार!
भारत की मां का है इतना बलशाली आचार,
सुसंस्कृत विचारों से रचित होता हर परिवार !!
शमा सिन्हा
17-6-24