अज्ञात का ज्ञान है योग
आत्मा से पहचान का संजोग,
निरंंतरअभ्यास से कर प्रयोग,
अंतर्दृष्टि का नित होता नियोग।
अंगों का बनता ऐसा समीकरण
शरीर सेआत्मा का दिखता व्याकरण !
होता शक्तिशाली जितना आत्म बल।
क्षिण होता उतना ही माया का छल।
इच्छायें पल पल होती जाती क्षिण
विलग तन से आत्म ज्ञान ,बनते जैसे जल और मीन ।
मिट जाता क्लेश, पल क्षिण उठती चिंता,
सत्य प्रतिष्ठित हो जाती है कृष्ण की गीता!
शमा सिन्हा।
21-6-23