“कृष्ण का विरह”
दिखाए नही जग को कृष्ण ने अपने हृदय के घाव,
अबोध उम्र मे छूटे ग्वाल-बाल, ममता भरी छांव,!
कर्म – बन्धन में बांध रोक लिया लल्ला नेआंसू अपने,
पर मन में बसा कर चल दिए ,यमुना-बालसखा के सपने!
पीछे छूटा यमुना तट, विशाल कदम्ब की छैया सूनी,
ब्रम्ह होकर भी ना रोक सके नियती की होनी!
अविरल बहा आंसू , रहे रोकते विह्वल नंद-यशोदा ,
रथ आरूढ दाऊ संग होकर, लेकर चले सदा के लिए विदा!
” कंस वध कर लौट शीघ्र लौटूंगा !” किया कान्हा ने वादा।
गोकुुल वासी समझ ना पाये, नियति का रास्ता !
नीती निपुण उद्धव भी बन गये, श्याम के प्रति निष्ठुर!
तब जग फिर समझे कैसे,राधा-कृष्ण के विरह का सुर?
शमा सिन्हा
28-6-23