“श्रावणी रास “

रास रचाने गोपी संग,आकाश विशाल पर छाये!

सुन कर रुक गई हवा, कृष्ण जो अपनी बंसी बजाये,

श्यामल रंग भर गई फिजा,पुनः वृंदावन रास रचाये!

हर एक घटा संग नाचे माधव,सबका मन भरमाये,

धन्य हुईं सब बालायें,केशव जब लगे उन्हें नचाने !

लगी बरसने मधु-चांदनी, नव धारा अमृत की बहने,

खिली पुष्प कलियां सतरंगी, रात को आईं महकाने,

कुुुहुकी काली कोयल,हरी धरा को जैैसे आई बहकाने!

आनन्दोत्सव हुआ उमंगित,चली लक्षमी खेत को भरने!

घटा ने जो पुकारा , मयूर बन श्याम राधा संग दौड़े आये,

वृन्दावन की कुंजगली गूंजी कान्हा की बंसी धुन से!

जितनी गोपी,उतनी राधा थिरक रहे गलबइयां डाले,

झूम रहे संग में उनके स्थचर से नभचर जीव सारे!

शमा सिन्हा
4-7-23

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