ना चाहिए मुझे तुमसे अब ,मोक्ष !
और ना चाहिए तुमसे कोई मुक्ति!
देना ही है तुम्हे तो दे दो ऐसी भक्ति,
अपने चरणों की कृष्ण तुम आसक्ति!
किसी और को अब नही है पाना,
सारी चेतना तुम में समाहृत जाना!
बिनती एक,जब भी बुुलाऊआना,
तुमसे ना है मुझे कुछ और मांगना!
हर उपलब्धी है तुम में ही समाई,
गवांयां है मैने जन्म निर्रथक कई,
माया ने फांसा मुझे,दिखा स्वप्न कई!
मैं मूढ़,अब जीवन-लक्षय समझ गई ।
शमा सिन्हा
6-7-23