“गिले शिकवे”

मेरा छूट गया लम्बा उससे था साथ,
जुड़ा था जीवन पल पल जिसके पात,
छुड़ा कर चला गया अचानक वह हाथ,
लेकर संग, गिले शिकवे की सौगात !

होती थी शिकायत जब कोई था सुनता,
मेरे मन की आहट को वह पल पल पढता,
आंचल मे चाहतों की खुशियां था भरता,
हर पल इर्द-गिर्द था साया उसका रहता!

दूरी उनसे बन गईअब है इतनी,
लिपटी रहती जिन्दगी से सांझ है जितनी!
रहती थी शिकायत उनसे मुझको बहुत,
ना अब मिलेंगें वो मुझसे,ना उन तक मेरी पहुँच!

ढूंढ ढूूंंढकर बहाना,करती थी शिकायत,
रोज ही उन्हें देती थी मैं कड़ी हिदायत ,
मुस्कुरा कर,करते थे जाहिर अपनी चाहत,
शिकवे को लगी नजर,अब कहां वह इनायत!

शमा सिन्हा
1-8-23

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