जुनून

नशा सा उसपर हर पल छाया है रहता ,
किनारा बहुत पास है उसे यूं लगता,
हवा में वह अनेक लकीरें यूं डालता ,
जैसेअपने सपनों के महल काआकार हो खींचता!

कहते हैं सब, वह अब होश में नही रहता,
कभी किताब कभी प्रयोगों की बांतें करता,
आकांक्षी है वह नभ से भी ऊचें पर्वत का,
उसकी सांसों में है जुनून नये किनारे का!

परवाह नही उसे लोगों की बयानबाजी का,
मंजूर है मिलनेवाला,उसे हर कांटा रास्ते का,
जला चिराग,मिटाया अंधकार अपनी रात का,
दिया नाम जुनून को अपने, जिन्दादिली का!

शमा सिन्हा
2-8-23

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