बचपन की कुछ प्यारी यादें,आज आप सेकरती हूं साझा।
जीवन होता था सरल बहुत तब,पारदर्शी थी व्यव्हारिकता !
परिवार हमारा साथ मनाता त्योहार मनाता,एक ही आँगन में जुट,
सबको यही चिंता रहती,कोई भाई बहन ना जाए खुशी में छूट!
भाई दूज पर बनता पीठा-चटनी,फुआ बताती बासी खाने की रीती
चना दाल की पूड़ी, खीर, आलू-टमाटर-बैगन-बड़ी की सब्जी!
गोबर से उकेर कर चौक,कोने में सजाते पान-मिठाई- बूंट ।
दीर्घायु होवें सब भैया हमारे,हम बहने पूजती शुभ “बजरी” कूट!
चुभाकर “रेंगनी” का कांटा,सभी जोगतीं काली नजर जोग टोना।
फिर जाड़ती आयु लम्बी,मनाती भौजी का रहे सुहाग अखंंड बना!
यम-यामिनी,नाग-नागिन ,सिंधोरा बना चढ़ाती फूल पान।
सूरज चांद को मना कर कहती”करना मेरे भैया का कल्याण !”
करती प्रार्थना,देव स्वीकारें पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष दूज!
“भाई बहन का प्रेम अखंंड हो!”मांगती विष्णु-शिव-चतुर्भुज!
भैया बने वज्र, देकर आशीष घोटवाती पूजित साबुुत बजरी!
पर जब रखती नेग की मांग, भैया को लगती बहुत बुरी,
चतुराई से वो कम ना रहते, चुनते कुछ ऐसी कुटिल तरकीब ,
बड़े नेग का दिखा सपना कहते “नौकरी पाने की दिन हैं करीब!”
अच्छा लगता नोंक झोंक कर ,नित उन्हे उलाहना देते रहना,
नेग से ज्यादा ,उनसे था लगाव और प्यार उनका आंचल संजोना!
शमा सिन्हा
7-11-23