भगाने को जेठ की चिलचिलाती धूप
वर्षा ऋतु लाती श्रावण -भाद्रपद बंदूक
प्यासी धरती की सुनकर ऊंचीपुकार
आकाश चट पहन लेता इंद्रधनुषी हार!
आती हवा सागर की लहरे अथाह बटोर,
पिघलती पर्वत पर बर्फ की शिलायें कठोर !
उफनती नदियां,भरते पोखर तालाब ,
बच्चे खेलते कूद कूद पानी में छपाक!
बादल संग जोआतीं बारिश की बूंदी
थिरकती मिट्टी लेकर खुशबू सोंधी सोंधी
हाथों में लिये रस का मिश्री भरा कटोरा
धरती को बन जाती हरे रंग का सकोरा
मोर कुहुकते बना वृक्षो पर अपना बसेरा
पीकर वर्षा जल लीची आम मीठे हो जाते!
फलों के बाग नित नई मिठाई खिलाते!
भादृ शुक्ल लाता फिर गणेश चतुर्थी त्योहार
एकदंत कोअर्पण होता मीठा मोदक आहार !
सब गाते नाचते,मिलकर करते फिर बहुत मस्ती
आनंद मनाती दस दिन सारी वसुधा कुटुंब जाती!