पूरी होती दीखती जब आस,
क्षण में आ जाती खुशी पास!
अर्से से रुका अगर जटिल काम,
उम्मीद लगाती शंका पर विराम!
कभी ये क्षणिक ही देता है आराम ,
फिर भी रौशन हो जाती है शाम!
व्यथित चित हो जाता है तब शांत,
सीमित होकर बहता सागर प्रशांत!
अक्सर चलंत होती है यह शांती,
किंतु इसके उजाले से मिटाती भ्रांति!
एक ठंडक मन बुद्धी में है उभरती,
जगा आस वह कटु वेदना है हरती!
उम्मीद पर ही बढ़ाता कदम है,जग,
हौसला देती,पूरे करने के सपने अचानक!
शमा सिन्हा
28-11-23