“मेरी नई समझ”

देख कलआई, मैं एक साथदो अजूबे दृश्य।
दोनों ने ही दर्शाया विस्मृत पुराना विलक्षण सत्य!

समृद्ध जश्न का माहौल था,आयेअतिथि थेअनेक!
दूजे मेंअगल-बगल के थे पड़ोसी, सब मस्त दिलफेंक!

एक सभा उन अमीरों की थी, पग-पग पैसे फेंक,
इनकी बात अलग थी,हंस मिल खाये रोटी सेंक!

धनिक चेहरों पर छाया था अकारण हीआक्रोश !
पर इनकी मस्ती अनंत बनी,सब थे आनंंदगोश !

उनके वर्ग अलग अलग थे,वृद्ध-युवा-बालक!
ये मेहनतकश दिलवाले सभी थे खुशी के चालक !

महसूस करने को बस, नायाब एक तथ्य था मनोहर!
बच्चों की टोली, दोनों वर्ग में अलग ना हुई क्षण भर!

“हँसते खेलते,लड़कर- मनते”,व्यस्त थे पल पल!
बिछड़ने का आदेश सुन,रोने लगतींआखें अश्रु भर!

चमकदार जोड़ा ना था जिनका,,नजरें रही उनकी झेप!उधर भूल कर सबकुछ वे मिल रहे थे लेकर प्रेम-लेप!

चम-चम चमक रहा,दमदार उधर उनका ताना-बाना!
इधर मक्सद एक था सहर्ष सामूहिक खुशी मनाना!

इच्छा अतृप्त,आकांक्षा लिए, रुकते वो कितनी देर ?
औपचारिकता निभाने में भी उनका समय हुआ कुबेर!

इन दोस्तों के जलसे में लगता रहा ठहाकों का फेरा,
पुनः मिलने का वादा किया तो थोड़ी ही दूूर था सवेरा!

अनुभव बना शिक्षाप्रद सत्य और आनंददायक मेरा।
उपजा सबसे स्नेह सम्बन्ध , समय बीता मिश्री भरा!

शमा सिन्हा
26-11-23

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