खिलौना”

देखते तो सभी हैं,खिलौने को खिलौने से खेलते,
भूल जाते सच्चाई ,बीच का फर्क नही समझ पाते!

बंधी होती है एक की डोर आकाश पार,
दूजा निर्जीव किंतु लुभाता दिखा रंंगीनआकार!

एक स्वत्: दिखाता भावों की प्रधानता
दूसरे को कृत्रिम चाभी देकर चलाना है पड़ता!

भूल कर सरताज परमपिता का साम्राज्य वह हंसता है,
वह जड़ मूर्त कृत्रिम खिलौना पाकर मनाता त्योहार है!

आदेश उसके विस्मृत कर रहता यह मौनअचेत,
भली वह आकृति,उंगली के इशारे पर चलती सचेत!

अतुलनीय है ईश्वरीय समृद्धि के पुरस्कृत गुण-विधान,
भूूलकर जिन्हें मनुष्य कर नक सका विवेक पूर्ण पान!

बना बौद्धिक विवेक विशेषज्ञ, प्रभू ने भेजा तुझे धरती पर,
वाह रे मूढ़ मति मनुष्य!रीझता है तू बेजान खिलौने पर!

शमा सिन्हा
30-11-23

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