सर्वशक्तिमान, जब स्वयं को समझ लेता है इंसान ,
उत्पन्न होता है अहंकार और विकृत होता है स्वमान!
होती नष्ट समझदारी,मिट जाता मानव सम्मान,
प्रतिपल तब करता वह अपनी मूढ़ता पर अभिमान!
वाचाल बन कर,करता सिद्ध नासमझी का सिद्धांत ,
छोड़ गुरु से पाई सुशिक्षा, स्वरचित गड्ढे में गिरता कालान्त!
गर्भित बुद्धिहीनता उसकी करती ना कभी किसी का सम्मान ,
हीन दृष्टि से जग देखती,सबका करती घृष्टतापूर्ण अपमान !
अपने मनोभाव श्रेष्ठ समझता ,बोता सदा फसल नफरत की,
छूटता समाज और साथी सब,जड़ रिश्तों की खोखली होती !
जैसे विशाल ताड़ का ऊंचा वृक्ष अकड़ता पाकर फल खजूर ,
शोभा अपनों की घर ना होती, उससे भागते सभी बहुत दूर !
ज्यों ज्यों धमंड हावी होता उसकी सोच बनती विकराल !
अपनी ही अज्ञानता से,बनाता खुद को बेहाल!
बचपन -जवानी-प्रौढ़ता तो व्यस्तता में जाते बीत,
घेरता बुढ़ापे को जब एकाकीपन,पास ना होता कोई मीत!
शमा सिन्हा
1-12-23