“पिता”
गोद लेने को उसे,देखा था मैंने सदा बहुत मचलते,
जन्म-स्वास्थ्य-उपचार पश्चात मैं थी मातृ-तन सट के!
जुटी नाल ने कर दिया था स्थापित रिश्ता जन्मदात्री से,समझ ना पाई, कैसे स्थापित हुआ सम्बन्ध उसका हमसे!
सदा वह निहारता हमें, कभी दूर और कभी पास से!
गूंजती हमारी ऊंची किलकारियां, उसके अंक समा के!
सुबह और शाम ही होती थी उसकी मुलाकात हमसे,
किंतु बहुत व्यग्रता से, इंतजार हर पल हम उसका करते!
अक्सर उसे अपनी अर्जी आमदनी , मां को देते हमनें देखा,
दूध-दही,अन्न लक्ष्मी से समृद्धी सदा घर में भरते पाया!
विद्यालय दाखिला भी उसने बहुत उत्साहजनक दिलाया!
“विद्यावती भव!आयुष्मान भव!”आशीष से हमें नहलाया!
हमारी जीत का त्योहार वह बड़े उमंग से था मनाता ,
“हार से लेकर सीख, आगे बढ़ने” की प्रेरणा वह बन जाता!
हमारी कमजोरियों को निपुण कला से जोड़,प्रोत्साहित करता,
” रुकना नही कभी,करना निरन्तर प्रयास!”प्रहरी बन वह पाठ पढ़ाता!
रात दिन निद्रा त्याग कर,अथक हमारी वह करता सेवा !
आवश्यकता किनारे कर अपनी, खिलाता हमें मिश्री मेवा!
कौतुक स्वर में पूछा एक दिन मैनें कर्मठ योगी मां से,
” असीमित संरक्षणं का यह रिशता किस विधी जुड़ा है हमसे?”
“ईश्वर सा है रुप जिनका,ये ही हैं संरक्षक हमारे”,कहा उस ने।
“हम दोनों ही की संतान है तू, ये जन्मदाता पिता हैं तुम्हारे!”
आज मिला गया था मुझको मेरी लंबित उत्सुकता को उत्तर !
जान गई जीवन को मेरे, मिला रूप क्यों अतुलनीय सुंदर !
शमा सिन्हा
रांची।
ता: 3-12-23