“चांदनी रात”


पग पग मोती लुटाता देखो,आया बन कर सजीला बन्ना चांद

गांठ जोड़ ठुमकती आई है दुल्हन नखरीली चांदनी साथ!

रात्री ने नभ की नीली चुनरी पहनाई उसमें बुनकर तारों का साज,

चार पहर रस्म निभाकर, बन्ना-बन्नी होंगे इक दूजे के आज !

लेकर शहनाई बैठा चकोर, दे रहा चेतावनी वह सोमदेव को,

“रूप प्रिया का इतना ना निरखो, कि नजर तुम्हारी लग जाए उसको!”

पपीहा रहा पुकार मीत को, नांच रही सुुनकर हवा सुरीली तान ,

मधुर मिलन की आस जगाये,थाम लिया है अनंग ने बाण!

शीतलताअमृत वर्षा की, लेेकर आई शरद् पूर्णिमा बन सौगात,

चांंदनी के आगोश में ही, बेहोश चांद आज बितायेगा सारी रात !

तकते रहते चकवी-चकवा, याद करते पुराने वादों की बात !

दूध नहाई धरा यूं खिल जाती ,पसरा कर अपने दोनों ही हाथ,

प्रेम ज्योति का जब रंंग पसरता , युगल प्रेमियों की लग जाती पांत!

(स्वरचित कविता)

शमा सिन्हा
रांची।
ता: 9-12-23

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