“नमस्कार”

मिलन भर जाता है इसकी विनम्रता के मिठास से,

सुखमय बनती है सभा सभी,इसके ही सौगात से!

डूबता है हृदय हमारा विनीत प्रेम के उद्गार में,

झुक जाता है शीश सभी का स्वागत के आभार से!

अग्रज -अनुज सभी , अति उमंंग आनंद- विभोर हैं होते,

विलक्षण इसके अनुुराग सेअपना पक्ष भी सभी हैं भूलते!

सुन्दर असीम यह है अभिवादन, स्नेह सदा है उपजाता,

कितनी भी हो विकट समस्या शान्ति चहुंओर ओर है फैलाता!

आयुष्य मिला पाण्डवों को,शीश झुका चरणो में जब,

रुक सके ना भीष्म पितामह,दियाअखंड सौभाग्य आशीश तब!

मात्र यह संकेत नही, एकीकृत करने वाला अभियान है,

स्नेहमय बंधन सुसज्जित, सुनियोजित सफल प्रयोग है!

सभी विस्मृृत भूलों को अक्षय क्षमादान है यह दिलाता ,

अपने नम्र आचार से,सुलह सदा प्रतिद्वन्दी से है कराता !

साक्ष्य अथाह भरे हैं , हमारे संस्कृतिनिष्ठ इतिहास में,

मिलती है कृपा परब्रह्म की मात्र एक नमस्कार से!

स्वरचित कविता।

शमा सिन्हा
रांची।

11-12-23

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *