धीर धरकर चकोर,मन को तू जरा बांध ले!
पुकारता जिसे है तू,वह तुझे ही है निहारे!
पाकर एक झलक,तूझे यह क्या हो गया रे?
वह व्याकुल चकवा भी तो कह रहा है-
“पूर्णता चाहत की,मिलन में होती नही !
नीलाआसमान भी यूंही लहराता नही!
क्षितिज के दोनों छोर से खोजता आया है
धरती के संग,धूरी पर वह नाचता रहा है!”
देख तुझे अब हो रही सारी दुनिया बावली,
चीर कर नभ,तेरे क्षितिज को छूना चाहती!
हाथ बढ़ा,वह तेरा दामन पकड़ना है चाहता!
ऐ चांद, अब तुझसे मानव भी दीदार है मांंगता!