गतिरत रचना प्रभू की जैसे है विचरती।
सूर्य-चंद्र और नभ की विधा सारी दीखती ।
यह जीवन भी अविरल चलता सदा रहता है!
बिना रुके कर्म का हिसाब करता रहता है।
सारे जीव बंटे है कर्म अनुसार कई श्रेणी में।
गगन और धरती के बीच डोलते हैं बंंधन में।
सफर यह नायाबअंतहीन चलता ही रहता है।
उम्र की गिनती से परे,एक चक्र से दूसरे चक्र में!
ईश्वर की रचना मे,संख्या नाप नही सकती लम्बाई ,
हर जन्म मे होता है अलग अलग उम्र का सफर!
(स्वरचित कविता)
शमा सिन्हा
ताः 28-12-23