अनुुभव बहुत सारे बटोरकर रख लिया है।
इसीलिए लिए तो आज वह याद आया है।
समेट अपने सारे,एक एक रंग बिरंगे पंख
ठंड मे हीआया था,उड़ गया फुर्र से नभ!
स्वस्थ और मस्त था”दह-चूड़ा”,सूर्य-संक्रांती का,
लाजवाब स्वाद खिचड़ी-चोखा,पापड़ अचार था!
फिर मची धूम शादी ब्याह और भोज के न्योता से।
उम्र के इस मोड़ पर,इम्तिहान की चिंता से मुक्त थे!
हमारी जिम्मेदारी में अनुजों की हौसलाअफजाई बची।
बीते वर्ष की घटनाओं में बस मस्त-मोहक यादें हैं छाई!
(स्वरचित कविता)
शमा सिन्हा
रांची।
ता: 28-12-23