रेतीले कैक्टस के पौधे पर एक पुष्प था खिला।
अगल बगल के फूलों ने उसे बड़े गौर से देखा!
सब अपने साथीयों को दे रहे थे ढेरों शुभकामनायें;
छेड़ रही थी”नव वर्ष”रागिनी पेेड़ से झूूलती लतायें!
अनदेखा उसको कर, वे लगे झूमने दूसरी दिशा में!
“वक्त ना था साथ उसकेअभी!”उसे बतायाअंतर्मन ने!
पुकारा खिली पंखुड़ियों को उसने,देख उन्हें प्यार से!
छोड़ उसेअकेला, मस्त थे साथ पंख फैलाये हंसनें में।
कहा किसी ने,”तू है कांटों पर खिलने वाला रेती पुष्प!
हमें देेख!हम रूपहले !सुंदर !तू तो है पत्र- विहीन शुष्क!
आंखों में भर पानी,मुस्कान रोक,सिमट गया वह चुपचाप।
फिर ना वह बोला कुछ ,मुस्काई बहती हवा अनायास!
“हारो नही हिम्मत सखा,बैठो ना तुम होकर यूं उदास!
शीघ्र होगा सूर्य उग्र, सहनशक्ति तुम्हारी देगी इनको जवाब! “
दिनकर लेकर रथ अपना, लगा चढ़नेआकाश के मध्य।
स्वरूप उसका बना रहा ,”अकड़ने वाले” हुए मुरझाने को बाध्य !
शर्म से हुई आंखें नीची, जैसे लज्जित हो रहे थेअज्ञानी!
सुंंन्दरता हो रही थी निर्बल, तरस रहे थे पीने को पानी!
तभी भौरे को देअपना रस,कैक्टस पुष्प ने भेजा संजीवनी!
ध्वनित हुई अध्यतावृति!खामोशी की शक्ति सबने मानी!
(स्वरचित, मौलिक रचना)
शमा सिन्हा
5-1-24