मन का पंछी

मंच को नमन।
मान सरोवर साहित्य अकादमी
आज की पंक्ति – मन का परिंदा
विधा-कविता
तारीख-5/1/24

"मन का परिंदा"

बड़ा दुलारा है वह मनमौजी,

अपनी ही चाल से है वह चलता।

इच्छाओं की तह से निकल कर,

अचानक ही वह है उड़ने लगता!

रहता नित नूतन परिहास में डूबा!

भंग शांति कर,वह व्यंंग सुनाता।

सिर-चढ़ा वह, कभी बात ना मानता!

मनआँगन में नित नये नांच दिखाता!

मुश्किल बहुत है समझाना उसे

उसकी हलचल से दुनिया चले!

पुष्पक वाहन लेकर सर्वत्र वह डोले!

कदम बढ़ाये बिना समय को तोले!

जीवन भर क्यों ना मानव करे प्रयास,

मन का परिंदा कर ना सके अपने बस!

सफलता मिलती जैसे एक क्षणिकआभास!

योगी अधीनस्त ही इसका स्थिर अह्सास!

(स्वरचित मौलिक कविता)

शमा सिन्हा
ता: 6-1-24

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