नये घर के आंगन से

क्या किसी ने पुकारा?

घर किसे कहते है,मैं सोचती हैैरतअंदाज

सजी कोठरिया या गूंजती हसी का साज

वह तिल तिल जोड़ता, नये सपने बुनता

“हर ईट को मैंनें इन हाथों से है अरजा

कल के कष्ट भरे पलों को कफन उढाता

गर्व से उठा कर सिर वह अक्सर कहता,

बनाया यह महल सबके महल से ऊंचा!

कह दे कोई किसी ने धागे से मदद है किया।

एक उसके सिवा मेरा हाथ किसी ने नही पकड़ा

ईश्वर ने ही सम्भाला,सबने तो मूंह है मोड़ा।

देखेंंगे,मैं कैसे शान से हूं अपने महल में रहता

ऊपर वाले के सिवा कौन है जो किसी को देता

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