यह कैसी मधुर घड़ी है आई!
चहुं ओर कौतुहलता है छाई!
यह शहनाई पवन ने है गुंजाई!
सवारी राम लला की पधराई!
कभी संसार ने,सोचा ना था !
भक्त का भगवा लहरायेगा!
अटल धैर्यअकेला,टक्कर लेगा!
राम का मंदिर भव्य बन जायेगा!
जिसका शिल्पकार हो महर्षि!
जिसके धन हों विश्व सत्यार्थी!
लग्न लगाए है गतिरत भागीरथी!
सेवक हैं जिनके पवनपुत्र रथी!
सम्भव सबकुछ मनोबल से है होता !
निश्चय ही प्रेरणा ध्वज बन लहराता!
नरेंद्र जैसा सार्थक प्रहरी,पथ दिखाता!
वनवास पश्चात रघुवर को है घर लाता!
जय सिया राम!
(स्वरचित एवं मौलिक कविता)
शमा सिन्हा
रांची।
तिथी: 23/1/24