“ऐ मन!”

रखना ऐ मन,पास अपने बस कुछ ही यादें!

ठहरी हैं जिनमें खुशी की वो कोमल सम्वादें!

बाकी सब कर देना विस्मृति के अंक सुपुर्द !

मिटाकर उनकी आकृति,उनका सारा वजूद!

बस एक बात गांंठ बांध कर रख लेना तुम !

चुभ गया हो नश्तर अगर, मिटाना उनका वहम!

खोल चिलमन,उड़ा देना हवा में सारे रंजो-गम!

छोड़ गलियां पुरानी,नये रास्ते पर रखना कदम!

समझा देना खुद को,जानता नही अब उनको कोई !

कट चुकी है डालियां,बेजान जड़ें,मिट्टी सूखी सोई!

फिर खोज कर नई मुरादें,सींचना प्यारे नये सपने,

सुकून की बारिश में फूटेंगी कलियां,आंगन अपने!

उड़ जाना आकाश!,बन तितली उनकी खुश्बू में!

देख रौनक ,आयेंगें परिंदे तुम्हारे ही चमन में!

समेटना,ऐ मन!तुम उन चमकते जुगनूओं को!

रौशनी जिनकी,आने ना देगी कभी अंधेरों को!

शमा सिन्हा

29-1-24

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