देख कांटे अनेक उसके सब कहते,”दूर रहो!”
पर वह मस्त मौला गुंजारता”मुझसा जियो!”
मैनें पूछ ही दिया,”ऐसी क्या बात है तुम में?”
बताओ ,क्या है बल,क्यों इतना शोर मचा रहे?”
“समझ जाओगी,बस कुछ ठहर जाओ मेरे पास!”
मैं चकित थी,स्वर में भराथा उसके स्नेह सुबास।
दिखाया उसने,निकट ही खिला उसके गुड़हुल पुष्प।
एक पहर बीता,शाम के साथ मुर्झा,वह हुआ शुष्क।
“अलविदा दोस्त!”कह, वह सुर्ख स्मित फूल हुआ सुप्त!
पूछा कैैकटस ने”अरे, तुम्हारी सुंदरता क्यो हुई लुप्त ?”
“काया कोमल थी मेरी! ना सह सकी कटु सूर्य प्रहार !
तुम बलवान हो मित्र!तुम सह सकते हो प्राकृतिक वार!
फिर कभी होगी भेंट, करूंगा मैं भी इंतजार !”
दो मित्र हो रहे थे जुदा,रोया सारा बाग जार जार!
वह सब रही थी देख,पूछा उसने फिर एक बार।
“कोमल खूबसूरती का होता क्या इतना ही सार?”
एक पहर भी ना बिता,यह करगया सब हार?”
“सही समझा तुमने!यूंही नही चलता लम्बा जीवन!”
कैक्टस बोला “सम्भालता तन-मन है खूबसूरत यौवन